भगवान श्रीकृष्ण ने ईश्वर का साक्षात् दर्शन करने का सन्देश दियाः साध्वी आस्था भारती
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 12 से 18 सितंबर 2022 तक डीडीए ग्राउंड, ब्लॉक ए, बंसल भवन के सामने, पेट्रोल पंप के पीछे, सेक्टर 16, रोहिणी, दिल्ली में ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, डीजेजेएस) की शिष्या भागवताचार्या महामनस्विनी विदुषी सुश्री आस्था भारती जी ने कथा के चतुर्थ दिवस जहाँ प्रभु की बाल लीलाओं से श्रद्धालुओं के मन को हर्षाया तो वहीं शाश्वत् भक्ति का मार्ग भी बतलाया। साध्वी जी ने कहा- अगर हम शांति को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें अपने विचारों के शोर से मुक्त होना होगा। प्रत्येक इंसान के मन में उठते विचार ही उसके भीतर की अशांति का मूल कारण हैं। व्यक्ति का शांतमय स्वरूप उसके मन से परे, उससे बहुत ऊपर है। स्व पर मनन करने से मन के बिखरे हुए विचार स्वतः ही खत्म हो जाते हैं। व्यक्ति आत्मस्थित हो जाता है। यही मुक्ति है। यही सच्ची शांति है।
गोवर्धन लीला के माध्यम से साध्वी जी ने बताया- गो़वर्धन= गोवर्धन, गो अर्थात इंद्रिय। इन्द्रियाँ सदैव नीचे की ओर ही जाती हैं। भगवान ने कहा- तुम सदा निम्नता की ओर ही जाती हो, अब ऊँचा उठो। माने श्रीकृष्ण ने इन्द्रियों को मोड़कर ईश्वर की ओर लगा दिया। यही है- इन्द्रियों का वर्धन। ईश्वर की प्राप्ति, यही गोवर्धन लीला का मुख्य उद्देश्य है। भक्ति या आराधना किसी भय व लोभ से नहीं की जाती। भक्ति के लिए प्रेम अनिवार्य है और प्रेम के लिए ईष्ट का दर्शन होना अनिवार्य है। क्या हमने श्रीकृष्ण तत्व का दर्शन किया? असंख्य बार श्रीगोवर्धन नाथ के दर्शन किए… परिक्रमा की लेकिन क्या ‘‘गोवर्धन लीला’’ का सार ग्रहण कर पाए? आपको स्वनिर्मित धारणाओं से मुक्त करने आई है- गोवर्धन लीला।
एक समय था, जब वैज्ञानिक गैलिलिओ ने महादंडाधिकारी की अदालत से बाहर निकल कर धरती पर जोर-जोर से पैर पटके थे। साथ ही, एक दर्द भरी कराह व विवश चीत्कार के साथ कहा था- ये लोग समझते क्यों नहीं…. पृथ्वी अब भी घूम रही है और सूर्य की परिक्रमा कर रही है। पर उस समय गैलिलिओ की इस कराहट और चींख पर किसी ने कान नहीं दिए थे। फलस्वरूप गैलिलिओ को प्रताड़ना पूर्ण उम्र कैद झेलनी पड़ी। कारण उस समय के समाज की यह धारणा थी कि पृथ्वी स्थिर है व सूर्य उसके इर्द-गिर्द परिक्रमा करता है। वर्षों तक उनकी यह मान्यता वज्र-सी ठोस रही। वे उसे ही पालते-पोसते और सहेजते रहे। पर आगे चलकर एक दौर आया, जब आधुनिक विज्ञान की दुंदुभी बजी। वैज्ञानिकों ने दूरबीनों की आँखों से ब्रहमांड को निहारा। बस अब क्या था? दूध का दूध और पानी का पानी सामने स्पष्ट होकर आ गया। सदियों पुरानी मान्यता का पुतला खंड-विखंड होकर धराशायी हुआ और गैलिलिओ का कथन प्रमाणित।
वैज्ञानिक जगत के इतिहास से प्रेरणा लें। मानयता होना गलत नहीं है परन्तु उसे बिन परखे सहलाना गलत है। प्रत्येक मान्यता को कसौटी पर कसना जरूरी है। प्रयोगों की आंच में तपाकर देखना आवश्यक है। एक बार पूर्ण सद्गुरु की कृपा से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर अपने अंतर्जगत में उतरकर देखिए। आप स्वयं कहेंगे- हाँ। भगवान दिखाई देता है और मैंने उसका प्रत्यक्ष अनुभव किया है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ‘‘आध्यात्मिक प्रत्यक्षानुभववाद’’- आओ और प्रत्यक्ष देखो का आवाहन लेकर आया है।