Wed. Nov 27th, 2024

आध्यात्मिक ज्ञान से ही युग परिवर्तन संभवः सतपाल महाराज

देहरादून/हरिद्वार। मानव उत्थान सेवा समिति के तत्वावधान में ऋषिकुल कॉलेज मैदान में तीन दिवसीय सद्भावना सम्मेलन के दूसरे दिन अपार जन समुदाय को संबोधित करते हुए सुविख्यात समाजसेवी, राष्ट्र संत व उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि अध्यात्म ज्ञान से ही युग परिवर्तन संभव है। जब भारत से आध्यात्म ज्ञान का प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में फैलेगा और सकारात्मक परिवर्तन होगा, तभी युग परिवर्तन संभव है।
मानव उत्थान सेवा समिति के तत्वावधान में ऋषिकुल कॉलेज मैदान में तीन दिवसीय सद्भावना सम्मेलन के दूसरे दिन बुद्धवार को विशाल जन समुदाय को संबोधित करते हुए सुविख्यात समाजसेवी, राष्ट्र संत व उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि कुरुक्षेत्र के मैदान में जब महाभारत का युद्ध होने वाला था। तब अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से करते हैं कि मेरा रथ दोनों सेनाओं के मध्य में ले चलो, मैं देखना चाहता हूं कि कौन-कौन योद्धा यहां लड़ने आया है। जब अर्जुन रथ से उतरकर अवलोकन करते हैं तो कहते हैं कि हे कृष्ण, यह जो मेरे भाई कौरव हैं, गुरुजन हैं, मित्र-रिश्तेदार हैं, मैं इनको मार कर पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता हूं, मैं भीख मांग कर जीवन का निर्वाह कर लूंगा लेकिन उनके विरूद्ध युद्ध नहीं करूंगा। वह युद्ध के मैदान में कायरता को प्राप्त हो जाते हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें आत्मा का क्रियात्मक उपदेश देते हुए कर्तव्यों का बोध करवाते हैं और उन्हें अपने विश्वरूप का दर्शन कराते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का विराट रुप देखकर तब अर्जुन कर्तव्य परायण होकर युद्ध करते हैं, फिर उनको विजय प्राप्त होती है।
उन्होंने कहा कि जब साधक अपने सद्गुरु से आत्मा का क्रियात्मक ज्ञान लेकर साधना करता हैं तो उसके समस्त विकार, संसय नष्ट हो जाते हैं तथा उसमें सकारात्मक परिवर्तन होता है। सद्भावना सम्मेलन में देश-विदेश से आये लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए श्री महाराज ने कहा कि देश में बढ़ रही सकारात्मक सोच का ही परिणाम है कि कोविड-19 की त्रासदी में भारत ने कम समय में ही वैक्सीन तैयार करके देशवासियों को मुफ्त वैक्सीन की डोज लगाई, साथ ही अन्य देशों को भी वैक्सीन भेजकर दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। उन्होंने कहा कि भारत में कोविड-19 का प्रभाव कम जरूर हुआ है, लेकिन सावधानी और सतर्कता अभी भी जरूरी है।
उन्होंने आगे कहा कि जिस प्रकार सेना में जो बंदूक चलाने वाला व्यक्ति होता है उसका यही लक्ष्य होता है कि मेरा निशाना सही जगह पर ही लगे, ऐसे ही हमारा लक्ष्य परमपिता-परमात्मा हैं, उसमें हमारा मन लगना चाहिए। हमें अज्ञानी नहीं बल्कि आत्मज्ञानी बनना है। ज्ञानमय कर्म जीवन में करते रहना है। आत्मज्ञानी व्यक्ति तभी बनता है जब वह सत्संग कार्यक्रम में आकर सत्संग को ध्यान से सुनता है। अंत में राष्ट्र संत श्री महाराज ने कहा कि हमारे मन के अंदर गुरु महाराज के प्रति सच्चा प्रेम और सेवा भाव होना चाहिए। इसी में भक्तों का कल्याण है। कार्यक्रम से पूर्व पूज्य माता अमृता रावत, विभु जी महाराज व अन्य विभूतियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। सम्मेलन में संत महात्माओं व बाईगणों ने भी गीता, रामायण पर सारगर्भित विचार रखें। मुंबई से आयी कबीर कैफे पार्टी ने अपने भजनों द्वारा श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। मंच का संचालन महात्मा हरीसंतोषानंद जी ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *