एक शख्सियत,एक मुकम्मल इंसान डा0 फिरासत हुसैन
सलीम रज़ा //
अपने जीवन के 60 बसंत और पत्रकारिता के 37 सालों के अनुभव के साथ कुछ बात आप लोगों से साझाा करने का मन हो रहा है इसलिए आज मेरी लेखनी अनायास कागज के कैनवास पर शब्दों को उकेरने पर मजबूर है। हर इंसान का अपने जीवन में अच्छे और बुरे इंसान से वास्ता पड़ता है जिनसे प्राप्त अनुभवों के आधार पर ही वह यह कहने पर मजबूर हो जाता है कि मैंने दुनिया देखी है। ये आम बात है जो ज्यादातर इंसान के मुंह से निकल ही जाती है चाहें तो इसे लोगों के तकियाकलाम से भी जोड़कर देख सकते हैं।
मैंने अपने इस लेखन के सफर में सभी तरह के लोगों से मिला हूं चाहें आईएएस अधिकारी हो पुलिस अधिकारी हों इंजीनियर हों डाक्टर हो या फिर किसी भी विभाग के छोटे बड़े अधिकारी जिनसे मिलकर जो संवादों का आदान प्रदान हुआ उसी को मैं अनुभव मानता हूं। ये मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है जो अच्छा है वो तो है ही लेकिन जो कड़वा अनुभव दे गया उसमें भी तो कोई अच्छाई होगी और बस उसी की अच्छाई ढूंढने में अपना वक्त लगा दिया। मैं अच्छा हूं या बुरा ये तो वो ही लोग बताने की कुव्वत रखते हैं जिन्होंने अच्छाई और बुराई को अंगीकार किया होगा।
मेरे जीवन मे ऐसे भी नाम आये जो शालीनता की मूरत,सौम्य व्यवहार और मुदुभाषिता के उदाहरण है जिनको मैने अपनी पुस्तक जिस पर मैं लेखन कर रहा हूं उसमें समायोजित किया है। उसी पुस्तक के एक पृष्ठ पर एक और नाम अंकित हो गया वो है डा0 फिरासत हुसैन साहब का। आप किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आप जिला बदायूं के कस्बा सैदपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर चिकित्साधिकारी हैं। आप प्रोन्न्ति पर उप मुख्य विकित्सा अधिकारी हैं, आप जितने ईमानदार अपने पेशे के प्रति हैं उतने ही वफादार अपने क्षेत्र की आवाम के लिए हैं।
उनकी कर्तव्यनिष्ठा तो कोरोना महामारी के दौरान सामने आई जब आपने इस जानलेवा महामारी में दिन रात एक करके लोगों को जागरूक किया कि कैसे इस महामारी से अपने आपको बचाया जा सकता है। आपने वैक्सीनेशन के लिए लोगों को जागरूक किया, बस्ती में जगह-जगह स्वास्थ्य शिविर लगाये जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग वैक्सीनेट हो सकें, जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता। अभी भी क्षेत्र में डेंगू का प्रकोप है जिसको लेकर आप और आपकी टीम अलर्ट मोड पर है, आप अपने स्तर से जितना भी हो सकता है उसे कर रहे है ये अपने पेशे के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना है जो एक मुकम्मल इंसान में ही देखने को मिलती है।