गूंज संस्था ने पद्मश्री डॉ. संजय को हिंदी भवन में काव्य-भूषण सम्मान से किया सम्मानित
देहरादून। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित संजय ऑर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंटर देहरादून के निदेशक डॉ भूपेंद्र कुमार सिंह संजय की पुस्तक “उपहार संदेश का“ को नई दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित परिचर्चा कार्यक्रम में देश के नामचीन साहित्यकारों ने डॉ. संजय के काव्य शिल्प को जहां उत्कृष्ट बताया वही उनके ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़े पक्ष को भारत की आत्मा के रूप में परिभाषित किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिंदी के सुविख्यात विद्वान डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा श्अरुणश् ने कहा कि यदि एक चिकित्सक सरस्वती पुत्र बन जाता है तो निश्चित रूप से इससे संवेदना उत्पन्न होगी और वह एक सफल चिकित्सक भी सिद्ध होगा। वह प्रेरणा का अमृत बन गए हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में शल्य शिल्पी डॉ. संजय साहित्य में भी सफल सिद्ध हैं, जो उनके अंदर छिपे एक संवेदन व्यक्त्वि का प्रमाण है।
कार्यक्रम की अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. रमा ने डॉ. संजय की कृति व उनके व्यक्तित्व को देश ही नहीं दुनिया के लिए प्रेरक बताया। डॉ. रमा पाण्डेय ने अपने संबोधन में कहा कि जब-जब अमृत महोत्सव की चर्चा होगी तब-तब आपकी काव्य संकलन भी चर्चा में आएगा, मुझे ऐसा विश्वास है। इनकी एक-एक कविता अपने आप में एक पूरी कहानी है। मां मुझे न जनना कविता के माध्यम से डॉ. संजय ने जो संदेश दिया है मेरा मानना है कि जिस दिन हम सबके बेटे पढ़ जाएंगे, उनको संस्कार मिल जाएंगे उस दिन बेटियां बच भी जाएंगी और पढ़ भी जाएंगी। जीवन न तो बड़ा होना चाहिए न ही लंबा बल्कि जीवन सार्थक होना चाहिए। भगवान ने आपको चिकित्सा और लेखन का धनी बनाया आप ऐसे ही बने रहें और स्वस्थ रहें।
शिक्षाविद डॉ. रमा की अध्यक्षता एवं लेखक दर्शिनी प्रिय के संचालन में आयोजित इस साहित्य परिचर्चा में विशिष्ट अतिथि विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलसचिव डॉ. श्रीगोपाल नारसन ने डॉ. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय को देश का गौरव बताया जिन्होंने अस्थिरोग विशेषज्ञ के रूप में शल्यक्रिया का ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया कि उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड तक जा पहुंचा और भारत के राष्ट्रपति ने भी उन्हें पद्मश्री देकर उत्तराखंड का मान बढ़ाया।
विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् डॉ. संजय कौशिक ने डॉ. सजंय की कृति को सराहा और कहा कि सरसरी निगाह से मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैं इसके एक-एक अक्षर पढ़ूंगा। इस अवसर पर हिन्दी की गूँज नई दिल्ली संस्था द्वारा डॉ. संजय जी को उनके प्रथम काव्य संग्रह के लिए “काव्य भूषण सम्मान“ से सम्मानित किया गया। नरेंद्र सिंह नीहार जी ने कहा कि कविता लिखना आसान नहीं है लेकिन हमारे बीच एक ऐसे चिकित्सक बैठे हैं जिन्होंने सीधे कविता से शुरुआत की। डॉ. संजय की कविता नमस्कार दो अंजान व्यक्तियों के बीच एक सेतु का काम करती है जो व्यक्तियों के मध्य एक आत्मीय बनाने का उपकरण है। डॉ. संजय की कविताऐं अनुभव का खजाना हैं।
डॉ. अखिलेश जैन ने कहा कि डॉ. संजय एक जीवंत उदाहरण हैं कि एक डॉक्टर एक विद्वान किस्म का कार्य भी कर सकता है। मैं डॉ. संजय की प्रथम काव्य संग्रह के लिए शुभकामनाएं देता हूं कि आप चिकित्सा के साथ साथ लेखन के कार्य में भी बहुत आगे बढ़ें। अपने स्वागत भाषण में डॉ. संजय ने अपनी उपलब्धियों का श्रेय नारी शक्ति के रूप में अपनी दादी, मां व पत्नी को दिया। उन्होंने कहा कि मां सरस्वती की प्रेरणा से उनकी कलम जब तक जीवन है चलती रहेगी। डॉ. संजय के द्वारा कविता के रूप में ष्उपहार संदेश काष् जो संकलन प्रकाशित हुआ उसके बारे में उन्होंने बताया, कि इस संग्रह की सभी कविताओं के पीछे एक कहानी है और आगे एक संदेश है। कविता के माध्यम से जो संदेश पद्मश्री डॉ. संजय ने समाज के लिए दिया वह समाज के लिए एक अनोखा उपहार है। डॉ. गौरव संजय ने कार्यक्रम में आए सभी अतिथिगणों एवं सभा में उपस्थित सभी महानुभावों को धन्यवाद दिया एवं आभार प्रकट किया। कार्यक्रम के दौरान विजय कुमार, समर्थ टंडन, शिवानी टंडन, पवन टंडन, शीना, विभा, भूपेन्द्र सिंह, मनोज कुमार, राजीव, राम किशोर सिंह, राकेश जखेटिया, डॉ. मंगल सेन, डॉ. सौदान सिंह, डॉ. रविन्द्र कुमार, अमर, डॉ. पन्ना लाल, अमरीश कुमार निरंजन, विशान दास, उर्मिला, अंकुर दुबे, विपिन, उदय वीर सिंह, सुमन मोहिनी, संजय कुमार सिंह, डॉ. राम बाबु, डॉ. सुनील कुमार सग्गर, डॉ. सत्यम् भास्कर, प्रो. फूल बंधन, श्रीमती भावना संजय, अभिषेक, सोनिया, लक्ष्मी, सन्तोषी, नेहा, सुमित्रा आदि मौजूद रहे।