Thu. Oct 9th, 2025

“सीबीआई जांच का ऐलान या सियासी चाल? धामी बनाम त्रिवेंद्र की पोस्टर जंग”

(सलीम रज़ा पत्रकार)

उत्तराखंड में बेरोजगारी और भर्ती घोटालों को लेकर लंबे समय से आंदोलन चल रहे हैं। युवाओं का गुस्सा लगातार सड़कों पर दिखाई देता रहा है। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग और उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) से जुड़े कई पेपर लीक मामलों ने राज्य की भर्ती व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। इन आंदोलनों की आग ने सरकार को कई बार बैकफुट पर भी लाया। आखिरकार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बेरोजगार आंदोलन और पेपर लीक मामलों की सीबीआई जांच के आदेश दे दिए। सरकार का कहना है कि अब वह इन मामलों की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच चाहती है, ताकि युवाओं का विश्वास शासन पर बना रहे।

मुख्यमंत्री धामी का यह फैसला जैसे ही सामने आया, राज्य की सियासत में एक नया मोड़ आ गया। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने बहुत पहले ही सीबीआई जांच की मांग कर दी थी और मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था। इसके बाद सोशल मीडिया पर पोस्टर वार शुरू हो गया। कुछ जगहों पर पोस्टर लगाए गए जिसमें त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीबीआई जांच का श्रेय दिया गया। पोस्टरों में उनके पत्र और पुराने बयानों का हवाला भी दिया गया।

यह पोस्टर वार केवल श्रेय लेने की होड़ नहीं है, बल्कि इसके गहरे राजनीतिक मायने हैं। एक ओर मुख्यमंत्री धामी युवाओं की नाराजगी को कम करना चाहते हैं और अपने निर्णयों को मजबूत नेतृत्व के तौर पर दिखाना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद को एक दूरदर्शी नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, जिन्होंने पहले ही सही सुझाव दे दिए थे। यह बात भाजपा के अंदर चल रही सियासी खींचतान की ओर भी इशारा करती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद को लेकर पहले से ही कई चेहरे सक्रिय हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर ही पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। ऐसे में त्रिवेंद्र का यह दावा कि सीबीआई जांच की मांग उन्होंने पहले की थी, यह संकेत देता है कि वे अभी भी अपनी राजनीतिक मौजूदगी बनाए रखना चाहते हैं। पोस्टर में उन्हें हीरो के तौर पर दिखाना भी इसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

दूसरी ओर, युवा वर्ग अभी भी इस बात को लेकर असमंजस में है कि क्या सीबीआई जांच वास्तव में निष्पक्ष होगी और क्या दोषियों को सजा मिल पाएगी। उनका विश्वास राजनीतिक बयानों की बजाय न्यायिक कार्रवाई और जांच की निष्पक्षता पर है। उन्हें उम्मीद है कि सीबीआई जांच से उन पेपर लीक मामलों का सच सामने आएगा, जिनकी वजह से हजारों युवाओं के सपनों पर पानी फिरा।

यह भी देखा जा रहा है कि पोस्टर वार के जरिए भाजपा की अंदरूनी राजनीति एक बार फिर सतह पर आ गई है। हालांकि पार्टी इस बात को सिरे से नकार रही है कि नेताओं के बीच कोई प्रतिस्पर्धा है, लेकिन घटनाओं की कड़ी इस बात को खुद ही साबित कर रही है कि प्रदेश की राजनीति में श्रेय लेने की दौड़ अब और तेज हो चुकी है।

आखिरकार, यह मामला न सिर्फ बेरोजगारों को न्याय दिलाने का है, बल्कि उस भरोसे को लौटाने का भी है जो युवाओं ने सरकार और व्यवस्था पर किया था। सीबीआई जांच की घोषणा भले ही एक बड़ा कदम हो, लेकिन असली परीक्षा अब उसके नतीजों की होगी। पोस्टर लगाकर श्रेय लेने से अधिक जरूरी यह है कि दोषियों को सजा मिले और आगे किसी युवा को अपनी मेहनत के बावजूद अन्याय का शिकार न होना पड़े।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *