बदायूं का ‘अमृत सरोवर’ बना उपेक्षा का प्रतीक: विकास की बजाय बदहाली की तस्वीर

बदायूं : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई ‘अमृत सरोवर’ योजना का उद्देश्य था – देशभर में जल संरक्षण को बढ़ावा देना, पर्यावरणीय संतुलन बनाना और ग्रामीण क्षेत्रों में सुंदर, उपयोगी जलाशयों का निर्माण करना। उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में भी इसी सोच के तहत एक अमृत सरोवर का निर्माण किया गया था। परन्तु, आज यह सरोवर विकास की मिसाल बनने के बजाय सरकारी उपेक्षा और भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण बन गया है।
सपनों की जगह कीचड़ का सरोवर
जिस अमृत सरोवर को गांववालों के लिए सौंदर्य, सैर-सपाटे और जल-संरक्षण के केंद्र के रूप में विकसित किया जाना था, वह आज गंदगी, झाड़ियों और सूखे की चपेट में है। सरोवर का निर्माण अधूरा है, किनारों पर मिट्टी का कटाव है और पानी का नामोनिशान नहीं। आसपास गंदगी और कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। इससे न केवल योजना का उद्देश्य विफल हुआ है, बल्कि ग्रामीणों के लिए यह निराशा का कारण बन गया है।
अधिकारियों की अनदेखी, जिम्मेदार कौन?
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि सरोवर निर्माण में भारी लापरवाही बरती गई। न तो उचित गहराई बनाई गई, न ही पानी भरने की कोई पुख्ता व्यवस्था की गई। पौधारोपण तो कागजों में हुआ, जमीन पर सिर्फ सूखी टहनियां दिखाई देती हैं। सवाल यह है कि इस योजना के लिए जारी बजट आखिर गया कहां? क्या जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों से कभी जवाब लिया जाएगा?
ग्रामीणों की नाराजगी
गांव के बुजुर्गों से लेकर युवा तक, सबमें इस अधूरी परियोजना को लेकर रोष है। ग्रामीणों का कहना है कि योजना को लेकर पहले खूब प्रचार हुआ था, लेकिन अब कोई देखने तक नहीं आता। यह सरोवर एक पर्यटन स्थल बन सकता था, जिससे गांव की सूरत बदलती, लेकिन अब यह उपेक्षा की मिसाल बनकर रह गया है।
सरकार और प्रशासन से सवाल
-
क्या बदायूं प्रशासन इस अमृत सरोवर की स्थिति से अनजान है?
-
किसे ठेके दिए गए, और किसके निरीक्षण में निर्माण हुआ?
-
सरोवर की निगरानी और रखरखाव की कोई स्थायी व्यवस्था क्यों नहीं है?
आगे की राह क्या हो?
जरूरत है कि सरकार और प्रशासन इस योजना को केवल कागजों पर पूरा न माने, बल्कि ज़मीनी हकीकत को संज्ञान में ले। अमृत सरोवर जैसे सराहनीय प्रयास अगर इसी तरह उपेक्षा के शिकार होंगे, तो जनता का सरकारी योजनाओं से विश्वास उठ जाएगा।
निष्कर्ष:
बदायूं का यह ‘अमृत सरोवर’ फिलहाल न ‘अमृत’ है और न ही ‘सरोवर’ जैसा दिखता है। यह सिर्फ एक सरकारी योजना के सपनों और हकीकत के बीच की खाई को दिखाता है। यदि समय रहते ध्यान न दिया गया, तो यह परियोजना बदायूं की पहचान बनने के बजाय उपेक्षा का प्रतीक बन जाएगी।