Sun. Sep 21st, 2025

प्रतिस्पर्धा की आड़ में छवि धूमिल नहीं कर सकते: हाईकोर्ट ने पतंजलि को दी चेतावनी

 दिल्ली / देहरादून:उच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक अहम आदेश में पतंजलि आयुर्वेद को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक और तुलनात्मक विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया है। यह आदेश डाबर इंडिया लिमिटेड की ओर से दायर उस अंतरिम याचिका के तहत आया है जिसमें कंपनी ने आरोप लगाया था कि पतंजलि द्वारा जारी किए जा रहे विज्ञापन उनकी प्रतिष्ठित उत्पाद च्यवनप्राश की छवि को धूमिल करने वाले और भ्रामक हैं।

न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की एकल पीठ ने डाबर की याचिका को स्वीकार करते हुए पतंजलि को तत्काल प्रभाव से इस प्रकार के किसी भी विज्ञापन को प्रसारित करने से रोक लगा दी है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि डाबर की अंतरिम याचिका में उठाए गए बिंदु विचारणीय हैं और फिलहाल अंतरिम राहत दिए जाने की आवश्यकता है। अदालत ने यह भी कहा कि प्रतिस्पर्धा की आड़ में किसी उत्पाद की छवि को हानि पहुँचाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

डाबर का कहना है कि पतंजलि द्वारा जारी किए गए विज्ञापन न केवल भ्रामक हैं, बल्कि वे सीधे तौर पर डाबर च्यवनप्राश को लक्षित कर रहे हैं और आम जनता के बीच गलत संदेश फैलाने का काम कर रहे हैं। याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि पतंजलि के विज्ञापनों में डाबर के च्यवनप्राश की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है, जिससे उपभोक्ताओं में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है और कंपनी की वर्षों से बनी ब्रांड साख पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

अदालत ने मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए दोनों पक्षों की दलीलों को संज्ञान में लिया और डाबर को फिलहाल राहत प्रदान की। अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को निर्धारित की गई है, जिसमें दोनों पक्षों को अपने पक्ष में विस्तृत तर्क प्रस्तुत करने होंगे।

गौरतलब है कि भारत में च्यवनप्राश जैसे उत्पाद एक लंबे समय से पारंपरिक स्वास्थ्यवर्धक सप्लीमेंट के रूप में उपयोग किए जाते हैं और इस बाजार में डाबर और पतंजलि दोनों ही प्रमुख खिलाड़ी हैं। ऐसे में इन दोनों ब्रांडों के बीच प्रतिस्पर्धा बेहद तीव्र है, और पूर्व में भी दोनों कंपनियों के बीच ब्रांडिंग और विज्ञापन को लेकर विवाद सामने आ चुके हैं।

इस मामले को भारतीय बाजार में विज्ञापन नैतिकता और प्रतिस्पर्धात्मक व्यवहार के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है। कोर्ट के इस आदेश से जहां डाबर को राहत मिली है, वहीं पतंजलि को अब सावधानीपूर्वक अपने विज्ञापन अभियानों की समीक्षा करनी होगी ताकि भविष्य में ऐसे किसी और विवाद से बचा जा सके।

विज्ञापन उद्योग और कानूनी विशेषज्ञ इस मामले पर करीब से नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि यह फैसला न केवल कंपनियों के ब्रांड व्यवहार को प्रभावित करेगा, बल्कि उपभोक्ताओं के बीच पारदर्शिता और विश्वास बनाए रखने की दिशा में भी एक मिसाल पेश करेगा।

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