“नैतिकता का संकट: आज की राजनीति की वास्तविक कहानी”

(सलीम रज़ा)
आज की राजनीति, जो कभी समाज और राष्ट्र की प्रगति का मार्गदर्शन करती थी, आज एक लचर और अस्थिर स्थिति में पहुँच चुकी है। जहां एक समय राजनेताओं का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रहित, समाज की भलाई, और नागरिकों की उन्नति हुआ करता था, वहीं आजकल यह उद्देश्य व्यक्तिगत या पार्टीगत स्वार्थों में सिमटकर रह गया है। इस आलेख में हम आज की राजनीति की उन कई पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जो इसे लचर और कमजोर बना रहे हैं।आजकल की राजनीति में नैतिकता का अभाव देखा जा रहा है। चुनावों में नेताओं द्वारा जो वादे किए जाते हैं, वे अक्सर भुला दिए जाते हैं। यह वादे चुनावी प्रचार के दौरान सिर्फ वोट पाने के लिए होते हैं, जबकि सत्ता में आने के बाद इनका पालन नहीं किया जाता। इसके परिणामस्वरूप, जनता का विश्वास नेताओं से उठता जा रहा है।
भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाएँ राजनीति की परिधि में आम हो चुकी हैं।भ्रष्टाचार, जो कभी एक दोष था, अब राजनीतिक जीवन का हिस्सा बन चुका है। यह भ्रष्टाचार केवल सरकारी विभागों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक दलों और नेताओं के व्यक्तिगत स्तर पर भी फैल चुका है। इसके चलते, सरकारी योजनाओं और नीतियों का लाभ आम जनता तक नहीं पहुँचता, और समाज में असमानता और अन्याय बढ़ता जा रहा है।आज की राजनीति में पार्टीवाद और जातिवाद की दीवारें इतनी ऊँची हो चुकी हैं कि राष्ट्रहित और समाज की भलाई की बजाय व्यक्तिगत और समुदायिक स्वार्थ प्रमुख हो गए हैं। राजनीतिक दल अक्सर जाति, धर्म, और क्षेत्रवाद के आधार पर वोट बैंक बनाने में लगे रहते हैं, जिससे समाज में दरारें और तनाव बढ़ते हैं। यह राजनीति को और कमजोर करता है और इसे व्यक्तिवाद की ओर धकेलता है।
आज के युवा वर्ग को राजनीति से दूर किया जा रहा है। जहां पहले युवा वर्ग राजनीति में भागीदारी करके समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाता था, वहीं आज वह इससे विमुख हो चुका है। इसका कारण यह है कि राजनीति में एक स्थिरता, ईमानदारी, और उद्देश्य की कमी है। इसके अलावा, राजनीति में तर्क और विचारों का आदान-प्रदान कम होता जा रहा है, और जगह ले रही है राजनीतिक दलों की लड़ाई और आरोप-प्रत्यारोप की संस्कृति।समाज की विविधता को स्वीकारने और समझने की बजाय, आजकल की राजनीति इसे एक कमजोरी के रूप में देख रही है। विभिन्न विचारधाराएँ, संस्कृतियाँ और जीवनशैलियाँ एक राष्ट्र की ताकत हो सकती हैं, लेकिन राजनेता इन्हें अक्सर टकराव का कारण मानते हैं। यह स्थिति समाज में असहमति और संघर्ष पैदा करती है।
संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना आजकल की राजनीति में आम हो गई है। लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करना और उनपर हावी होना, सत्ता का गलत उपयोग करना, यह सब आजकल की राजनीति में दिखाई देता है। यह लोकतंत्र की मूल भावना का उल्लंघन है और इससे नागरिकों का विश्वास डगमगाता है।आज की राजनीति लचर होती जा रही है, क्योंकि इसमें नैतिकता की कमी, भ्रष्टाचार का बढ़ता प्रभाव, जातिवाद और पार्टीवाद की हावी स्थिति, युवाओं की अनिच्छा, समाज की विविधता का अनादर और संविधान की अवहेलना जैसी समस्याएँ हैं। अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाला गया, तो यह राजनीति और समाज को और अधिक अस्थिर बना सकती है। इसलिए, हमें अपनी राजनीति को पुनः सुधारने, पारदर्शिता और ईमानदारी की ओर अग्रसर करने की आवश्यकता है, ताकि राष्ट्र की प्रगति और समाज का कल्याण हो सके।