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पुण्य तिथि : जनता की नब्ज पहचानने में माहिर थीं इन्दिरा गांधी

(सलीम रज़ा)

राजनीतिक प्रतिद्वंदिता अपनी जगह है लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि इंदिरा गांधी सियासत ककी वाो पाठशाला थीं जहां से कई नेेता निकल कर आयेे। हमेें यह कहने में जरा भी संकोेच नहीं हैे कि स्व0 इन्दिरा गांधी एक ऐसी शख्सियत थीं जिसका राजनीति में कोई सानी नहीं है। उनके अन्दर सियासत की वो दूरदर्शी प्रतिभा थी जिसका लोहा देश और दुनिया ने माना था। कभी इन्दिरा गांधी को ‘‘गूंगी गुड़िया’’ कहा जाता था, ये उस दौर की बात थी जब वह लाल बहादुर शास्त्री जी के निधन के बाद प्रधानमंत्री बनी थीं। 1966 से 1977 तक उन्होंने तीन बार इस पद पर रहकर हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व किया था, उसके बाद 1980 में इन्दिरा गांधी दोबारा इस पद पर आसीन हुईं थीं।

इन्दिरा गांधी वो महिला थीं जिन्होंने परिणामों की कभी फिक्र नहीं करी थी, जिसके चलते उनके अन्दर साहसिक फैसले लेने की क्षमता कूट-कूट कर भरी थी। उनके साहसिक फैसले से लोगों में खासी नाराजगी रहती थी खास तौर से पंजाब में अलग खालिस्तान की मांग कर रहे सिक्ख समुदाय के विद्रोह को कुचलने के लिए जब उन्होंने आपरेशन ब्लू स्टार चलाया तब सिक्ख समुदाय का एक बड़ा धड़ा उनसे खासा नाराज था इसी के चलते 1984 में आज ही के दिन उनके सिक्ख अंगरक्षकों ने उनका जिस्म छलनी कर दिया था।

इन्दिरा गांधी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहबाद जिले में हुआ था।जब इन्दिरा लंदन के आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रही थीं ये वो दौर था जब हिन्दुस्तान अंग्रेजों की गुलामी से निजात पाने के लिए छटपटा रहा थाए हिन्दुस्तान में स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जल चुकी थी इसी से प्रेरित होकर इन्दिरा गांधी ने लंदन में आजादी समर्थकों द्वारा चलाई जा रही ‘इन्डिया लीग’की सदस्यता ग्रहण करी थी। उन्हें 1959 में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत करा गया था। सही मायनों में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ, जब लाल बहादुर शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने तो उनके कहने से इन्दिरा गांधी ने चुनाव लड़ा था और वो केन्द्र में सूचना और प्रसारण मंत्री बनी थीं।

यूं तो इन्दिरा गांधी को राजनीति विरासत में ही प्राप्त हुई थी लिहाजा उनके अन्दर निर्णय लेने की गजब की क्षमता थी, उनके कुछ ऐसे निर्णय भी थे जिसका विरोध भी उन्हें झेलना पड़ा था, उनके ही दौर में बैंकों का राष्ट्रीयकरण,पूर्व जमीदारों के प्रीवी पर्स वापस लेना, उन्होंने पाकिस्तान के टुकड़े करके बांग्ला देश को एक नया देश गठन करने में अपनी मदद दी थी । लेकिन उसके बाद कांग्रेस सिंडीकेट से मुखालफत लेना उनके राजनीतिक दौर के बेहद कठिन और संघर्षशील दिनों मे गिना जाता है, ये सारी बातें इन्दिरा गांधी के व्यक्तित्व और उनके राजनीतिक कौशल की गवाही बयां करती है। इन्दिरा गांधी सियासत की वो पाठशाला बनीं जिसमें से कई ऐसे नेता उभर कर सामने आये जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को आगे बढ़ाते हुये उनके विजन को काफी करीब पहुचाया था।

उनकी कार्य शैली के सब कायल थे अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने परिणाम की परवाह करे वगैर कुछ ऐसे साहसिक फैसले भी लिए जिसका देश को फायदा मिला लेकिन उन्हीं के द्वारा कुछ ऐसे निर्णय भी रहे जो विवाद की जड़ बने जिसका राजनीतिक नुकसान भी उन्होंने उठाया था, लेकिन इन्दिरा गांधी ने कभी हार नहीं मानी थी। इन्दिरा गांधी के अन्दर राजनीतिक निडरता भी थी जिसकी मिसाल उन्होंने पेश भी करी थी उदाहरणतयाः राजनायिक दांव पेंच में अमेरिका के राष्ट्रपति निक रिचर्डसन को मात देना प्रमुख था।

वो जनता की नब्ज पहचानने में माहिर थीं 1973 के दौर में जब इन्दिरा गांधी अपने गृह जनपद इलाहाबाद कांग्रेस सम्मेलन में भाग लेने पहुंची तो उनके द्वारा सभा को सम्बोधित करने से पूर्व ही असंतुष्ट विपक्षी लोगों की भीड़ उनकी नीतियों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन कर रही थी यहां तक कि उन्हें काले झण्डे भी दिखाये गये थे लेकिन राजनीतिक प्रतिभा की धनी इन्दिरा गांधी ने अपने सम्बोधन में ये कहकर सभी को शान्त कर दिया कि मै जानती हूं कि आप लोगों को परेशानी है और हमारी सरकार इस सिम्त में ठीक से काम नहीं कर पा रही है ।

देखने वाली बात ये है कि उन्हें अच्छी तरह से मालूम था कि उनके फैसलों और उनकी सरकार की नीतियों से देश की आवाम खुश नहीं है लेकिन राजनैतिक प्रतिद्वंदता का ये वक्त था जिसे वो अच्छी जरह से समझ चुकी थीं । बहरहाल सियासत में कोई भी कितना दिग्गज क्यों न हो जनाब जनता ऐसी है जो सड़कों पर उतर ही आती है बामुश्किल तीन साल गुजरे इस अशांति ने विकराल रूप ले लिया और अन्ततः 1976 के दौर में इन्दिरा गांधी की जन विरोधी नीतियों से जहां लोग सड़कों पर उतर आये वहीं इन्दिरा समर्थक नेता भी जनता के साथ हो लिए ऐसे में अपने साहसिक फैसलों के लिए मशहूर इन्दिरा गांधी ने चोटी के नेताओं जयप्रकाश नारायण ,राजनारायण,लाल कृष्ण आडवानी सरीखे नेताओं को जेल में डाल कर देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी, ये दौर ही इन्दिरा गांधी के दौर का काला अध्याय बनकर रह गया था जहां उनकी छवि एक निरंकुश शासक के रूप में सामने आई थी।

इन्दिरा गांधी के कुछ ऐसे साहसिक फैसले थे जिनके बाद उनके राजनैतिक प्रतिद्वंदियों ने भी उनका लोहा माना आगे चलकर उनको आयरन लेडी के नाम से जाना जाने लगा था। 1971 में जब पाकिस्तान को दो भागों में तकसीम करके बंगला देश बना इन्दिरा गांधी के इस साहसिक फैसले से एक बर तो दक्षिण एशिया की सियासत में भूचाल ही आ गया था। पाकिस्तान को इन्दिरा गांधी का ये कदम शूल की तरह चुभता रहा जिसकी टीस ने ही युद्ध को जन्म दिया लेकिन अपने राजनैतिक कौशल के चलते हिन्दुस्तान ने पाकिस्तान को मुह की खिलाई जब 90 हजार सैनिकों के साथ पाकिस्तान ने भारत के सामने घुटने टेकते हुये आत्म समर्पण कर दिया था।

1974 में इन्दिरा गांधी के शासन काल का अहम वर्ष ही कहा जायेगा जब 18 मई को अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश सहित वीटो पावर वाले देशों की परवाह न करते हुये उन्होंने आपरेशन स्माइलिंग नाम देकर पोखरण में परमाणु परीक्षण करके पूरी दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया था। 1984 का दौर इन्दिरा गांधी की राजनीतिक क्षमता और उनके कौशल का इम्तिहान ही कहा जा सकता है क्योंकि 17 अप्रैल 1984 को एक बार फिर पाक की नापाक हरकतों से हिन्दुस्तान में उथल-पुथल मच गई थी क्योंकि पाक्स्तिान ने सियाचिन पर कब्जा करने की गलतफहमी पाल ली थी जिसकी भनक लगते ही इन्दिरा गांधी ने पाक के नापाक मंसूबो को नाकाम करने के लिए इन्दिरा गांधी ने भारतीय सेना को अपरेशन मेघदूत की मंजूरी दी थी जिसकी बदौलत पाकिस्तान को फिर मुह की खानी पड़ी,लेकिन हिन्दुस्तान के अन्दर राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन चुका था,देश गृह युद्ध जैसी आग में झुलस रहा था पंजाब प्रान्त अलग खालिस्तान की मांग कर रहा था और समूचा प्रदेश बरूद के ढेर पर बैठा था।

विद्रोह पर उतर आये लोंगों को सही राह पर लाने के लिए एक बार फिर उन्होंने कड़ा फैसला लेते हुये आपरेशन ब्लू स्टार को मंजूरी दी और इस कार्यवाही से स्वर्ण मंदिर परिसर में खालिस्तान समर्थकों पर बडी कार्यवाही को अंजाम दिया गया जिसमें खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरवाला समेत कई समर्थकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था जिससे उनके अन्दर प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रही और अन्ततः आपरेशन ब्लू स्टार के बाद अलगाव वादियो के निशाने पर रहीं इन्दिरा गांधी को उनके सिक्ख अंगरक्षकों ने ही आज ही के दिन उनकी हत्या कर दी थी।

बहरहाल अपने साहसिक फैसलों से इन्दिरा गांधी ने एक नया इतिहास बनाया था जो स्वर्णिम अक्षरों में लिखा इुआ उनकी शहादत और निर्भीक सियासी घटनाक्रम को दर्शाता है वो अपनी इसी शैली के चलते आयरन लेडी कहलाई थीं हां उन्होंने जो ‘गरीबी मुक्त’ भारत का सपना देखा था ये बात अलग थी कि आगे की सरकारें उसे पूरा नहीं कर पाईं लेकिन कांग्रेस मुक्त भारत की जब बात कानों में सुनाई देती है तो सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि क्या सियासत में वलिदान देने की कोई अहमियत होती है या प्रतिद्वंदता बलिदान पर भारी है ? खैर वो एक सशक्त महिला थीं, एक कुशल राजनेता थीं उनके अन्दर सियासत के वो सब गुण थे जो देश को तरक्की खुशहाली की तरफ ले जाते उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें शत-शत नमन।

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