Wed. Apr 30th, 2025

“ताड़ी से टिकट तक: बिहार की सियासत में चढ़ता ताड़ का रस”

पटना  :  बिहार की राजनीति में ताड़ी एक बार फिर बहस का मुद्दा बन गई है। राज्य में 2016 से लागू पूर्ण शराबबंदी कानून के तहत ताड़ी पर प्रतिबंध को लेकर अब राजनीतिक गलियारों में गर्मागरम चर्चा हो रही है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने ताड़ी को शराबबंदी कानून से बाहर रखने की पुरजोर मांग की है, जिससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नीति एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है।

तेजस्वी यादव ने हाल ही में पटना में पासी समुदाय की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने बतौर उपमुख्यमंत्री कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आग्रह किया था कि ताड़ी को शराब की श्रेणी से बाहर रखा जाए। उन्होंने कहा, “ताड़ी पासी समुदाय का पारंपरिक व्यवसाय है और इसे शराब की श्रेणी में रखकर इस समुदाय की आजीविका पर चोट की गई है।”

राजद के मुताबिक, ताड़ी निषेध कानून से बिहार के लगभग 2% पासी समुदाय और अन्य अत्यंत पिछड़े वर्गों (EBC) की आजीविका प्रभावित हुई है। तेजस्वी के इस बयान को उनके सामाजिक समीकरण विस्तार की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, जिससे वह एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण से आगे बढ़कर अन्य जातियों को भी अपने साथ जोड़ना चाह रहे हैं।

इस मुद्दे पर जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने भी तेजस्वी यादव का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, “यह एक अच्छा कदम है। शराबबंदी कानून पूरी तरह विफल साबित हुआ है। शराब की दुकानें तो बंद हो गईं, लेकिन शराब की होम डिलीवरी अब आम बात हो गई है।”

वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री चिराग पासवान ने भी ताड़ी को लेकर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, “ताड़ी एक प्राकृतिक पेय है और इसे शराब की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए। यह कानून गरीबों और दलितों को निशाना बना रहा है।”

हालांकि, जनता दल (यू) ने तेजस्वी के ताड़ी पर रुख को राजनीतिक हथकंडा करार दिया है। पार्टी प्रवक्ताओं का कहना है कि यह फैसला केवल चुनावी फायदे के लिए लिया गया है और नीतीश सरकार की नीति सामाजिक सुधार की दिशा में एक ठोस कदम रही है।

गौरतलब है कि अप्रैल 2016 में नीतीश कुमार सरकार ने बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम लागू कर राज्य में शराब की बिक्री, निर्माण और उपभोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय राजद, जो सरकार में साझेदार थी, ने शराबबंदी का समर्थन तो किया, लेकिन ताड़ी को लेकर अपने विरोध को दबा लिया।

अब जबकि राज्य में आगामी चुनावों की सरगर्मी तेज होती जा रही है, ताड़ी का मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का केंद्र बन गया है।

क्या ताड़ी को फिर मिलेगा वैध दर्जा?
इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में बिहार की सियासत की दिशा तय कर सकता है।

आम लोगों की राय इस मुद्दे पर बेहद अहम है, क्योंकि ताड़ी न केवल एक पारंपरिक पेय है, बल्कि इससे हजारों परिवारों की आजीविका भी जुड़ी हुई है — खासकर पासी समुदाय और अन्य EBC वर्गों की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *