बर्त्वाल केसाहित्य को समेटने में”तुंगनाथी”का महत्वपूर्ण योगदान :महाराज
देहरादून : वरिष्ठ साहित्यकार डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल “तुंगनाथी” जी आज हमारे बीच नहीं हैं।
“तुंगनाथी” जी के यूं एकाएक चले जाने से हम सभी स्तब्ध हैं।उक्त बात प्रदेश के लोक निर्माण, पर्यटन, सिंचाई, पंचायतीराज, ग्रामीण निर्माण, जलागम, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने रविवार को वरिष्ठ साहित्यकार डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल “तुंगनाथी” के निधन पर उत्तरांचल प्रेस क्लब में चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि सभा में बोलते हुए कही।
उन्होंने कहा कि डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल का व्यक्तिगत रूप से समय-समय पर उन्हें सान्निध्य प्राप्त होता रहा है।श्री महाराज ने कहा कि साहित्यकार चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्य को समेटने में डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल “तुंगनाथी” का महत्वपूर्ण योगदान और प्रयास रहा। उन्होंने उनके नाम से शोध संस्थान की स्थापना की, स्वयं इसके संस्थापक सचिव के रूप में निष्काम भाव से आजीवन कार्य करते रहे। जगह-जगह समारोह-गोष्ठियाँ आयोजित करवायी।
मूर्तियों की स्थापना करवायी और सबसे महत्वपूर्ण, उनकी अप्रकाशित रचनाओं को खोज कर उनकी ज्ञात कविताओं के साथ पुस्तक रूप में प्रकाशित किया।चंद्रकुँवर की डायरी और गद्य रचनाएँ, इसी किताब के माध्यम से प्रकाश में आयीउन्होंने कहा कि डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल को यदि हम चलता फिरता पुस्तकालय कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
“तुंगनाथी” जी ने दो हजार गांवों का भ्रमण कर उन गांवों की भौगोलिक, ऐतिहासिक जानकारी को हासिल किया था।डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल “तुंगनाथी” का जाना साहित्य जगत के साथ साथ उत्तराखंड राज्य कि एक बड़ी क्षति है।ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान।श्रद्धांजलि सभा में चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान से जुड़े कई साहित्यिक, पूर्व मंत्री शुरवीर सिंह सजवाण, सुरेन्द्र कुमार अग्रवाल सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे।