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वैचारिक क्रान्ति के जनक थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण

(सलीम रज़ा)

लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पुण्य तिथि पर उन्हें शत्-शत् नमन। जयप्रकाश नारायण हम सब को का तब-तब याद आयेंगे जब-जब समाजवाद तार.-तार होगा और सरकार की दमनकारी नीति की डाल फले फूलेगी । बहरहाल ये अटूट सतरू है कि लोकनायक जयप्रकाशा नारायण जैसे लोगों का अपना समूल जीवन सच्चाई और समाजवाद की फिक्र और तानाशाही के खिलाफ संघर्ष करते हुये गुजर जाये ऐसे बिरले कम ही होते हैं। इन्हीं में एक नाम शुमार होता है भारत रत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण का, जिन्होंने तानाशाही सरकार के खिलाफ मुखर होकर सम्पूर्ण क्रान्ति की अलख जगाई जिसका परिणाम ये हुआ कि उस वक्त की तत्कालीन सरकार की मुखिया इन्दिरा गांधी का सिंहासन डोलने लगा अन्ततः इस क्रान्ति की लपट में कांग्रेस सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।

हमने सुना था कि क्रान्तिकारी बिहार में पैदा होते हैं सही में ये सच था क्योंकि उनमें से एक जयप्रकाश नारायण भी थे जिनकी जन्म स्थ्ली बिहार राज्य के छपरा जिले की है। 11 अक्टूबर 1902 को इस विलक्ष्ण प्रतिभा के धनी शिशु ने देवकी दयाल के घर में जन्म लिया था, उनकी माता धार्मिक संस्कारों वाली महिला थीं जिसका असर वाल जीवन में जयप्रकाश नारायण के ऊपर पड़ा था। अठ्ठारह साल की उम्र में उनका विवाह बिहार के प्रसिद्ध गांधीवादी विचारधारा वाले वृजकिशोर की सुपुत्री के साथ 1920 में संपन्न हुआ था ये ही वजह रही कि उनकी पत्नि शादी के बाद कस्तूरबा गांधी के आश्रम रही थीं। ये 1921 की बात है पटना में मौलान अबुल कलाम के ओजस्वी भाषण से जय प्रकाश नारायण इस कदर प्रभावित हुये कि कालेज छोड़कर साबर मती आश्रम जाने की तैयारी में लग गये, वहीं से वे बिहार विद्धापीठ चले गये थे ।

जयप्रकाश नारायण के अन्दर समाजवाद इस कदर हावी था कि उन्होंने काशी विश्वविद्धालय से बी0एस0सी0 करने का अपना फैसला त्याग दिया था कारण ये था कि काशी विश्वविद्धालय में पैसा अंग्रेजों का ही लगता था अन्ततः अपने परिवार वालों की रजामंदी से उन्होंने फ्रांसिसको जाने का फैसला किया था। अपने विवाह के दो साल के उपरान्त यानि 1922 में जय प्रकाश नारायण उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका चले गये थे, उन्होंने केलीफोर्निया यूनीवर्सिटी से रसायन शास्त्र में इन्जिनियरिंग की उसके वाद विसकांसन विश्वविऋाालय में समाजशास्त्र का अध्ययन किया था, जीवट जयप्रकाश ने अपनी पढ़ाई के मंहगे खर्चे को वहन करने के लिए कम्पनियों और रेस्टोरेन्ट में काम करने के अलावा खेतों तक में काम किया था।

जयप्रकाश नारायण अध्ययन के दौरान माकर््स के समाजवाद से बेहद प्रभावित थे, स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के बाद उनका सपना पी0एच0डी0 करने का था लेकिन अपनी मां के खराब स्वास्थ की खबर ने उन्हें भारत लौटने पर मजबूर कर दिया और उनका पी0एच0डी का सपना अधूरा रह गया। उनकी अमेरिका से भारत वापसी 1929 के दशक में हुई थी वो भी ऐसे समय में जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन अपने चरम पर था इसी दौरान वे महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के सम्पर्क में आ गये। 1932 में गांधी जी,नेहरू जी और अन्य बड़े कांग्रेसी नेताओं के जेल जाने के बाद जयप्रकाश नारायण ने भारत के अलग-अलग जगहों पर आन्दोलन का नेतृत्व किया । उग्र होते आन्दोलन से बौखलाये अग्रेजों ने आन्दोलन की कमर तोड़ने के लिए सितम्बर 1932 में जय प्रकाश नारायण को गिरफ्तार करके नासिक जेल में ठूंस दिया।

नासिक जेल में उनकी मुलाकात कांग्रेस के जोशीले नेताओं मीनू मसान, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, सी0के0नारायण स्वामी से हुई जेल के अन्दर जयप्रकाश नारायण की नेताओं के बीच चले गहन मंथन ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी को जन्म दिया था । कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी समाजवादी विचारधाराओं वाली पार्टी थी कांग्रेस और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के बीच अवरोध तब पैदा हुआ जब 1934 में कांग्रेस ने चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला लिया था क्योंकि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने इसका विरोध किया था। जयप्रकाश नारायण ने 1939 के दशक में जो द्वितिय विश्व युद्ध का दौर था उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लोक आन्दोलन की कमान संभाली थी। उन्होंने ही अ्रगेजी हुकूमत को किराया और राजस्व रोकने के लिए अभियान भी चलाया था ,अंग्रेजों को लौह मैटिरियल उपलब्ध न हो पाये इसके लिए उन्होंने टाटा स्टील में हडताल करवाई थी उनके इस प्रयास के लिए सरकार ने उनहें गिरफ्तार कर लिया था, जहां उन्हें 9 माह की सजा सुनाई गई थी।

जेल से छूटने के बाद उन्होंने नरम और गरम दलों यानि महात्मा गांधी और सुभाष चन्द्र बोस के बीच सुलह भी कराने का प्रयास किया था जिसकी भनक लगते ही अंग्रेजी सरकार ने एक बार फिर उन्हें बन्दी बना लिया था लेकिन वो मौका पाकर जेल से फरार हो गये थे। ये उस वक्त की बात है जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ों आन्दोलन का बिगुल बज चुका था। 1943 में उन्हे फिर गिरफ्तार कर लिया गया था,1945 में जय प्रकाश नारायण को जेल से स्थान्तिरित करके आगरा जेल भेज दिया गया था ऐसे समय में गांधी जी ने अंग्रेजी सरकार से कोई भी समझौता करने से इन्कार कर दिया और शर्त रखी कि जब तक राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण की रिहाई नहीं होती वो किसी भी वार्ता के लिए तैयार नहीं है, अन्ततः 1946 में अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों को रिहा कर दिया था। 1948 में जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस समाजवाद दल का भी नेतृत्व किया था बाद में गांधीवादी विचारधारा वाले दल के साथ मिलकर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना करी।

1954 में जयप्रकाश नारायण ने बिहार में बिनोवा भावे के सर्वोदय आन्दोलन के वास्ते अपना पूरा जीवन समर्पित करने का ऐलान किया। कुछ दिन राजनीति से विरक्त रहने के बाद पुनः 1960 के दशक के अंत में जय प्रकाश नारायण राजनीति में सक्रिय हो गये थे । बेरूत में एक अन्तर्रराष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेते हुये जय प्रकाश नारायण ने शान्ति सेना बनाने का सुझाव दिया था, उन्होंने भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को दोस्ताना बनाने के लिए प्रयासरत् रहते हुये वे पाकिस्तान भी गये थे।जयप्रकाश नारायण की उपलब्धियों में वो दिन अविस्मरणीय रहेगा जब चम्बल में डाकुओं के आतंक से पूरा उत्तर भारत कांपता था उस वक्त जयप्रकाश नारायण के अथक प्रयासों से चम्बल घाटी के 500 से ज्यादा खतरनाक डाकुओं को आत्मयमर्पण कराया था। 15 जून 1975 को पटना के मैदान से जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रान्ति की मशाल जलाई जहां छात्रों और युवकों की मांगे थीं जिन्हें तत्कालीन इन्दिरा सरकार मान सकती थी लेकिन अपने हठ के कारण जय प्रकाश को इस क्रान्ति के लिए मजबूर किया था।

जय प्रकाश का कहना था कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शिक्षा के अन्दर क्रान्ति ऐसे ज्वलन्त मुद्दे हैं जो मौजूदा व्यवस्था से पूरे नहीं हो सकते क्योंकि ये व्यवस्था की ही देन है, इसलिए व्यवस्था को बदलने के लिए सत्ता परिवर्तन बहुत जरूरी है जिसके लिए सम्पूर्ण क्रान्ति जरूरी है। इन्दिरा सरकार के खिलाफ उतरे जयप्रकाश ने जनता पार्टी बनाई थी। इन्दिरा गांधी के निशाने पर रहे जय प्रकाश और साथी नेताओं के विद्रोह को देखते हुये इन्दिरा गांधी ने 1977 में आपातकाल लगाकर जयप्रकाश सहित बड़े नेताओं को जेल में बन्द कर दिया था लेकिन पटना से जय प्रकाश के आन्दोलन की निकली चिन्गारी ने इन्दिरा गांधी के शासन को उखाड़ फेंका था। छात्र संघर्ष वाहिनी की कोख से निकले लालू प्रसाद, नितीश कुमार, सुशील मोदी, राम विलास पासवान जैसे नेता अवतरित हुये थे ।जयप्रकाश संसदीय व्यवस्था को सही नहीं मानते थे वे उसे ब्रिटिश प्रणाली से मिलाकर देखते थे वे लोकतंत्र को दलतंत्र मानने के खिलाफ थे।

उनका मानना था कि योग्य व्यक्ति ही संसद के दरवाजे तक पहुंचे उन्होंने देश में समाजवाद,सर्वोदय और सच्चे लोकतंत्र की स्थापना का सपना देखा था । जयप्रकाश नारायण ने समग्र क्रान्ति लाने के लिए छात्रों से एक साल विरक्त रहने का आहवान किया था इसका असर भी होना शुरू हो गया था लेकिन सरकार की दमनकारी नीति और बिगड़ते स्वास्थय के चलते ये पूरा नहीं हो पाया लेकिन सही मायनों में जयप्रकाश नारायण लोक नायक थे वे सम्पूर्ण क्रान्ति के जनक तो थे ही साथ ही साथ उन्होंने देश के अन्दर वैचारिक क्रान्ति को भी जन्म दिया था। अब जो देश में सियासी घटनाक्रम चल रहा है और जब भी देश में समाजवाद तार-तार होगा, सरकार की दमनकारी नीति फले फूलेगी तब-तब हमें जयप्रकाश नारायण याद किये जायेंगे। हम उनके आदर्शों को कभी नहीं भुल सकते उनकी जयंती पर उन्हें शत.शत नमन।

 

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