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“प्रेम: आत्मा की शांति से अपराध तक का सफ़र”

(शिवम यादव अंतापुरिया)

आज का समाज आधुनिकता की तेज़ रफ्तार में दौड़ रहा है, जहाँ रिश्तों की परिभाषाएँ बदली हैं, और भावनाओं की स्थायित्वता पर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए हैं। इस बदले हुए सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में ‘प्यार’—जो कभी आत्मा की शांति, समर्पण और निस्वार्थता का प्रतीक हुआ करता था—अब कई बार संदेह, स्वार्थ, हिंसा और अपराध का माध्यम भी बनता जा रहा है।

वर्तमान समय में प्रेम संबंधों से जुड़ी घटनाओं पर यदि एक तटस्थ दृष्टि डाली जाए तो यह स्पष्ट दिखता है कि अब प्यार महज़ एक भावना नहीं रह गया है, बल्कि एक मानसिक, सामाजिक और कभी-कभी कानूनी संकट का कारण भी बनता जा रहा है।

प्रेम में स्वार्थ की घुसपैठ:
जहाँ पहले प्रेम त्याग का पर्याय था, आज वहाँ अधिकार, स्वामित्व और ईगो का स्थान बढ़ता जा रहा है। जब कोई संबंध अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं चलता, तो वही प्रेम possessiveness और obsession में बदल जाता है, जो मानसिक प्रताड़ना, एसिड अटैक, बलात्कार जैसे अपराधों की ज़मीन तैयार करता है।

सोशल मीडिया और डिजिटल प्रेम:
आज की डिजिटल दुनिया में इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और डेटिंग एप्स ने प्रेम को तेज़, सतही और क्षणिक बना दिया है। भावनात्मक जुड़ाव की जगह दिखावे और आकर्षण ने ले ली है। ऐसे प्रेम जब अस्वीकृत होते हैं, तो आहत अहंकार अपराध के रूप में बाहर आता है—’अगर मेरी नहीं हो सकती, तो किसी की नहीं होगी’ जैसी मानसिकता इसी की उपज है।

झूठ और छल से उपजा प्रेम:
कई बार प्रेम झूठ, धोखे और छल की बुनियाद पर खड़ा होता है। ऐसे रिश्ते जब उजागर होते हैं तो कई बार आत्महत्या, ब्लैकमेलिंग या हिंसा की घटनाएँ सामने आती हैं। यह दिखाता है कि प्रेम की शुद्धता जब स्वार्थ से प्रदूषित होती है, तो वह अपराध को जन्म देती है।

प्रेम, जाति और समाज:
अभी भी हमारे समाज में प्रेम विवाह, विशेषकर अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाह को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है। ऐसे में ‘ऑनर किलिंग’ जैसी घटनाएँ यह बताती हैं कि प्रेम आज भी अपराध माना जाता है, और इसके पीछे परिवार, प्रतिष्ठा और समाज के मिथ्या मान्यताएँ ज़िम्मेदार हैं।

महिलाओं और पुरुषों दोनों के खिलाफ अपराध:
आज कई युवतियाँ प्रेम में धोखा खाकर सामाजिक रूप से टूट जाती हैं और उनका इस्तेमाल कर छोड़े जाने के मामलों में वे न्याय की तलाश में थाने, कोर्ट और अस्पतालों के चक्कर काटती हैं। वहीं दूसरी ओर, झूठे यौन शोषण या छेड़छाड़ के मामलों में युवकों का जीवन भी बर्बाद होता है। इस प्रकार प्रेम का दुरुपयोग भी अपराध की श्रेणी में आता है।

उपसंहार –
प्यार, जो कभी शांति और आत्मिक संतुलन का स्रोत हुआ करता था, अब कई बार अपराध का बीज भी बनता दिख रहा है। इसका कारण प्रेम नहीं, बल्कि उसमें घुला हमारा स्वार्थ, असहनशीलता, समाज का ढांचा और अस्वस्थ मानसिकता है। आवश्यकता है कि हम अपने भीतर प्रेम को एक पवित्र भाव के रूप में विकसित करें, उसे अधिकार नहीं बल्कि अपनत्व के रूप में देखें। तभी हम इस प्रश्न का उत्तर “ना” में दे सकेंगे—कि नहीं, वर्तमान प्यार में अपराध के बीज नहीं छिपे हैं।

– शिवम यादव अंतापुरिया
(बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ)
मो. 9454434161

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