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मोदी–पुतिन शिखर वार्ता, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में बड़े करार की उम्मीद

दिल्ली: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का दो दिवसीय भारत दौरा गुरुवार से शुरू हो रहा है। वह 4 और 5 दिसंबर को आधिकारिक यात्रा पर भारत में रहेंगे और इस दौरान 23वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। चार साल बाद हो रही यह यात्रा कई मायनों में बेहद अहम मानी जा रही है। पुतिन आखिरी बार 2021 में भारत आए थे, लेकिन उस समय उनका दौरा कुछ घंटों तक ही सीमित था, जबकि इस बार वे भारत में दो दिन बिताएंगे।

यात्रा के दौरान पुतिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। 4 दिसंबर की शाम दिल्ली पहुंचने के बाद उनकी पीएम मोदी के साथ मुलाकात और निजी रात्रिभोज का कार्यक्रम तय है। दौरे के दूसरे दिन राष्ट्रपति भवन में पुतिन का औपचारिक स्वागत किया जाएगा। इसके बाद वे राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। हैदराबाद हाउस में द्विपक्षीय तथा प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता होगी, जिसमें कुछ प्रमुख उद्योगपति भी उपस्थित रह सकते हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन भारत–रूस बिजनेस फोरम में शामिल होंगे। शाम को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिए जा रहे विशेष भोज में शामिल होने के बाद पुतिन स्वदेश लौटेंगे।

पुतिन के दौरे में ऊर्जा, व्यापार और रक्षा क्षेत्र के कई अहम समझौते संभव माने जा रहे हैं। चार साल बाद हो रही बैठक का एक प्रमुख लक्ष्य भारत को रूसी तेल, मिसाइल सिस्टम और लड़ाकू विमानों की अधिक खरीद के लिए तैयार करना है, खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका के दबाव का असर दोनों देशों के आर्थिक संबंधों पर पड़ा है। इस बार पुतिन के साथ रूसी रक्षा मंत्री आंद्रेई बेलोउसॉव और व्यापार एवं उद्योग जगत का बड़ा प्रतिनिधिमंडल शामिल होगा। माना जा रहा है कि यह यात्रा भारत–रूस के विशेष संबंधों को नए सिरे से मजबूत करने का अवसर बनेगी।

दोनों देशों के अधिकारी यात्रा से पहले रक्षा, कृषि, मुक्त व्यापार, नागरिक परमाणु ऊर्जा और शिपिंग जैसे मुद्दों पर बातचीत कर चुके हैं। रूस भारत के साथ परमाणु ऊर्जा सहयोग को बढ़ाना चाहता है। रूसी प्रतिनिधिमंडल में बैंकिंग और रक्षा कंपनियों के प्रमुख भी शामिल हैं। स्बेरबैंक रुपये के माध्यम से भारत की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश में रुचि दिखा रहा है। उधर रूस भारत की मदद चाहता है ताकि उसकी तेल कंपनियों को तकनीकी उपकरण उपलब्ध हो सकें, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते कई आपूर्तिकर्ता बाधित हैं। भारत भी रूस के सखालिन–1 प्रोजेक्ट में अपनी 20% हिस्सेदारी बहाल कराने के प्रयासों को इस यात्रा के एजेंडा में शामिल कर सकता है।

रक्षा क्षेत्र को लेकर उम्मीदें सबसे ज्यादा हैं। अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत की रूस पर सैन्य निर्भरता अब भी काफी मजबूत है। रूस ने भारत को उन्नत लड़ाकू विमान एसयू–57 की पेशकश की है और उम्मीद की जा रही है कि इस दौरे में इस पर भी चर्चा होगी। भारत एस–400 वायु रक्षा प्रणाली की अतिरिक्त इकाइयां खरीदने पर विचार कर रहा है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव के अनुसार एस–400 की बिक्री इस यात्रा के एजेंडे में शामिल है। उन्होंने ब्रह्मोस परियोजना का जिक्र करते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच सिर्फ हथियारों की खरीद नहीं, बल्कि उच्च तकनीक का आदान–प्रदान भी होता है।

परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी नई प्रगति की संभावना है। रूस छोटे और लचीले परमाणु रिएक्टर बनाने की आधुनिक तकनीक भारत के साथ साझा करने में रुचि रखता है। कुडानकुलम परियोजना में पहले से चल रहे सहयोग को आगे बढ़ाने पर भी चर्चा संभव है।कुल मिलाकर, राष्ट्रपति पुतिन की यह यात्रा रूस–भारत साझेदारी को रक्षा, ऊर्जा, व्यापार और रणनीतिक मामलों में नई दिशा देने वाली मानी जा रही है। विशेषज्ञ इसे दोनों देशों के संबंधों के लिए एक बड़ा मोड़ और नए रक्षा एवं आर्थिक सौदों के अवसर के रूप में देख रहे हैं।

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