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मुस्लिम बुद्धिजीवी और एक नए भारत का उदय

देश के राष्ट्र-निर्माण में केवल सैनिकों या सांसदों की ही भूमिका नहीं है, बल्कि विचारकों, वैज्ञानिकों, उद्यमियों और सुधारकों का योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण रहा है। आज़ादी के बाद से मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भारत को आधुनिक, प्रगतिशील और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई है। उनका प्रभाव विज्ञान, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, उद्योग, लोक नीति और सामाजिक कल्याण के क्षेत्रों में दिखाई देता है। प्रयोगशालाओं, बोर्डरूम और कक्षाओं में, उन्होंने एक आत्मनिर्भर और समावेशी भारत की दिशा में काम किया है।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की दृष्टि ‘भारत 2020’ विज्ञान, नवाचार और युवा सशक्तिकरण के माध्यम से देश को विकसित राष्ट्र में बदलने का मार्गदर्शन करती है। उनके भाषण और पुस्तकें लाखों लोगों को सपने देखने और ज्ञान तथा ईमानदारी को प्रगति के दो मुख्य इंजन मानने के लिए प्रेरित करती हैं।

व्यापार और उद्योग क्षेत्र में अज़ीम प्रेमजी के नेतृत्व में विप्रो ने वैश्विक आईटी पावरहाउस के रूप में पहचान बनाई। प्रेमजी फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने शिक्षा सुधार और गरीबी के चक्र को तोड़ने के लिए अरबों डॉलर का योगदान दिया। सैयद ज़फ़र महमूद और एम. ए. चिदंबरम जैसे उद्योगपति भी औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले मुस्लिम बुद्धिजीवियों में शामिल हैं।

ई. श्रीधरन के नेतृत्व में भारतीय मेट्रो परियोजनाओं में काम करने वाले इंजीनियरों और परियोजना प्रबंधकों में कई मुस्लिम पेशेवर शामिल थे। अंतरिक्ष अनुसंधान में डॉ. सैयद ज़हूर कासिम ने भारत के अंटार्कटिक अभियानों की नींव रखी। विदेश नीति में सलमान हैदर ने विश्व मंच पर देश का प्रतिनिधित्व किया।

देशभर में मुस्लिम शिक्षक, समाज सुधारक और नवप्रवर्तक साक्षरता बढ़ाने, स्वास्थ्य जागरूकता फैलाने और रोज़गार सृजन में योगदान दे रहे हैं। नए भारत का निर्माण किसी एक समुदाय या क्षेत्र की उपलब्धि नहीं, बल्कि विभिन्न मस्तिष्कों और योगदानों का साझा परिणाम है।

मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने अपने नवाचारों, सुधारों और नेतृत्व से भारत को वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाने में मदद की है। उन्होंने साबित किया कि शिक्षा, उद्यमिता और बौद्धिक प्रयास भी उतने ही देशभक्तिपूर्ण हो सकते हैं जितना सैन्य सेवा। भारत की शक्ति उसके लोगों की विविधता के साथ-साथ विचारों की विविधता में भी निहित है। मुस्लिम बौद्धिक परंपरा हमेशा एकीकरण, प्रगति और सेवा के मार्ग पर रही है।

-इंशा वारसी, जामिया मिलिया इस्लामिया

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