पटाखों से निकलने वाले रसायनिक धुएं से एक हजार बच्चे प्रभावित
देहरादून : दीपावली के दौरान पटाखों से निकलने वाले रसायनिक धुएं से हर साल तकरीबन एक हजार बच्चे बीमार होते हैं। इनमें से दो से तीन बच्चे अस्थमा जैसे रोग की चपेट में आ जाते हैं। कई बच्चों को लंबे इलाज और एहतियात बरतने के बाद बीमारी से राहत मिल जाती है। लेकिन कुछ अस्थमा पीड़ित बच्चों के लिए इनहेलर और दवाई जिंदगी भर की मजबूरी बन जाते हैं। फिलहाल इस त्योहार को आने में अभी डेढ सप्ताह बाकी है। लेकिन मोहल्लों में पटाखों का शोर सुनाई दे रहा है।
खासकर बच्चों के तो पटाखे छोड़ना इस त्योहारी सीजन का नया शौक बन गया है। पटाखों से पैदा होने वाले प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। लेकिन इनसे निकलने वाला धुआं हवा को भी प्रदूषित कर देता है। इस रसायनिक धुएं से सबसे अधिक सांस के रोगियों और बच्चों को नुकसान पहुंचता है।बाल रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि हर साल दिवाली के दौरान खांसी, गले में दर्द, बलगम बनना और सांस में तकलीफ जैसे रोगों के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिवाली के त्योहारी सीजन के दौरान ओपीडी में रोजाना 35 से 40 बच्चे पहुंच रहे थे।
दीपावली के बाद करीब एक महीने तक रोजाना धुएं से बीमार हुए बच्चों के आने का सिलसिला जारी रहा। सभी बच्चे श्वसन तंत्र के रोगों से पीड़ित थे। उन्होंने बताया कि तब अस्थमा जैसे लक्षणों वाले तीन बच्चों को रेफर भी किया गया था। ये सभी बच्चे पटाखों के धुएं से बीमार हुए थे। बताया कि हर साल दिवाली के आसपास का एक महीना ऐसा होता है जब ओपीडी में आधी संख्या केवल धुएं से बीमार होकर आने वाले बच्चों की होती है।
डॉक्टरों का कहना है कि पटाखों में पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर (गंधक) है। वहीं इसमें लेड (सीसा), क्रोमियम, मरकरी (पारा) और मैग्नेशियम जैसे धातु भी होते हैं। इनके जलने से सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस निकलती है। उन्होंने बताया ये सभी गैस श्वसन तंत्र के लिए बेहद खतरनाक होती है। इससे खांसी, गले में दर्द, बलगम अधिक बंद होने की परेशानी होती है। गले में इरिटेशन के साथ खांसी लगातार होती है और बलगम भी बनता है। अगर समय पर उपचार नहीं किया जाता है तो अस्थमा जैसे लक्षण आने लगते हैं। उन्होंने बताया कि इस तरह की हालात न बने इसलिए ग्रीन दिवाली मनाएं।
Sources:AmarUjala