न्यायपालिका में डिजिटल क्रांति की ओर कदम, 5.23 करोड़ आदेश हुए अपलोड

देहरादून : राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल द्वारा आयोजित नॉर्थ जोन द्वितीय रीजनल कांफ्रेंस के दूसरे दिन तकनीकी नवाचार और डिजिटल न्याय प्रणाली को लेकर अहम विचार साझा किए गए। कार्यक्रम में न्यायमूर्ति एम. सुंदर ने न्यायिक डेटा की सुरक्षा को सबसे बड़ी चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में डेटा को सुरक्षित रखने के लिए मल्टी-सर्वर बैकअप आवश्यक है और डेटा के नष्ट होने की स्थिति में वैकल्पिक उपायों पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।
उन्होंने ई-सेवा की सराहना करते हुए विधिक अनुवाद सॉफ्टवेयर के उपयोग और सुधार की दिशा में जानकारी साझा की।
कार्यक्रम के समापन सत्र में न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने ई-कोर्ट प्रोजेक्ट की प्रगति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह चरणबद्ध रूप से न्यायालयों में लागू किया जा रहा है। ऑनलाइन ट्रैफिक चालान जैसे मामलों का वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से त्वरित निपटारा इसका उदाहरण है।
न्यायिक आदेशों के आंकड़े चौंकाने वाले
न्यायालयों में अब तक 5.23 करोड़ आदेश अपलोड किए जा चुके हैं, जिनमें से केवल 2.18 करोड़ ही डाउनलोड हुए हैं। यह दर्शाता है कि वादकारियों में अभी भी डिजिटल जागरूकता की कमी है। इस दिशा में इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
AI से फैसले बनाने पर विचार
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति एम. सुंदर ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि AI की मदद से न्यायिक आदेश तैयार करना भविष्य की जरूरत बन सकता है, हालांकि इसके साथ कई तकनीकी और नैतिक चुनौतियां भी जुड़ी हैं। उन्होंने हिंसा व दुर्व्यवहार से जुड़े मामलों के ऑनलाइन निपटारे की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के अंत में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी ने सभी न्यायाधीशों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया और सम्मेलन को ज्ञानवर्धक बताया।