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‘‘भारत छोड़ो आंदोलन’से सहम गई थी ब्रिटिश हुकूमत

(सलीम रज़ा)

जब भी किसी भी सरकार का जनता पर कोई जुल्म होता है तो हमेशा एक नारा हवा में तैरता जरूर सुनाई देता है ‘‘ जोर जुलम की टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है’’ इस नारे का मतलब ही क्रान्ति है। यानि सरकार की कार्यशैली के खिलाफ ही ये नारा सड़कों पर हजारों की तादाद में उमड़े जन सैलाब के मुह से सुनाई देता है। ऐसे ही जब देश अ्रग्रेजों की गुलामी की बेड़ी में जकड़ा हुआ था तब हिन्दुस्तान की जनता ऐसी ही एक क्रान्ति के साथ सड़कों पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उतर आई थी जिसे अगस्त क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। भारत छोड़ो आन्दोलन की कसौटी पर खरी उतरी इस क्रान्ति ने ब्रिटिश हुकमरानों की जड़े हिला कर रख दी थीं। भारत छोड़ो आन्दोलन ने सम्पूर्ण राजनीतिक माहौल की तस्वीर को ही बदल डाला था। दरअसल 8 अगस्त यानि आज ही के दिन मुम्बई तब का बम्बई के गोवलिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासभा ने यह प्रस्ताव पास किया था जो भारत छोड़ो के नाम से था।

वैसे इससे पहले भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई प्रस्ताव आये परिणाम शून्य ही रहा, लेकिन भारत छोड़ो प्रस्ताव एक ऐसा प्रस्ताव था जिसने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन को धार दी थी। इस प्रस्ताव के बाद पूरे देश में एक अजीब सा खुशी और जोश का माहौल था, इसी माहौल ने आजादी की लालसा की चिंगारी को विस्फोट में बदल दिया। बौखलाहट में अंग्रेजी हुक्मरानों ने हिन्दुस्तान के उन चोटी के नेताओं को जो आजादी के कुरूक्षेत्र में उतर चुके थे उनको कैदखाने में डाल दिया था। अंग्रेजी हुकूमत ये भांपने में नाकाम रही कि इस गिरफ्तारी का असर क्या होगा, और वही हुआ जिसका भय अंग्रेजों को सता रहा था। देश की जनता सड़को पर उतर आई और अंग्रेजी हुकूमत ने दमन का रास्ता इख्तियार कर लिया इसके सिवा उनके पास और कुछ भी नहीं था। पूरा देश आक्रोश से भर गया लेकिन 8 अगस्त को फैली इस क्रान्ति से इस बात का संदेश अंग्रेजी हुकूमत के पास पहुंच गया कि अब उनकी हुकूमत का हिन्दुस्तान में अस्त होना लाजिमी हो गया है।

8 अगस्त 1942 की इस क्रान्ति की ज्वाला न जाने कहां-कहां तक धधक उठी इसका आंकलन तो इसी बात से लगने लगा कि समूचे हिन्दुस्तान की जनता ने अंग्रेजों के जुल्म की चादर उतारकर एक नई सुबह के लिए करबट अवश्य बदल ली। इसमें कोई दो राय नहीं कि 1885 से चले आ रहे आन्दोलन 1942 में एक क्रान्ति बनकर उफान पर था। सही मायनों में भारत छोड़ो आन्दोलन हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा आन्दोलन कहा जा सकता है, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर दिया था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ ये आन्दोलन उस वक्त और उग्र हो गया जब महात्मा गांधी ने हिन्दुस्तान की जनता को करो या मरो का मंत्र दिया हालांकि महात्मा गांधी हिंसा के पक्षधर नहीं थे, लेकिन देश की जनता हिंसा पर उतारू थी । बड़े नेताओं जैसे महातमा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, को गिरफ्तार करना अंग्रेजी हुकूमत की विवशता थी। उन्हें लगा कि इनकी गिरफ्तारी से आंन्दोलन की धार कमजोर पड़ जायेगी लेकिन इस पूरे आन्दोलन की बागडोर जनता ने अपने हाथों में ले ली थी। परिणाम ये हुआ कि जनता हिंसा पर उतारू हो गई, पूरे देश में आगजनी और तोड़फोड़ की घटनायें होने लगीं लेकिन गांधी जी अहिंसा के रास्ते पर कायम रहे हालांकि अंग्रेजी हुकूमत ने इस हिंसा के लिए कांग्रेस और गंाधी जी को ही जिम्मेदार ठहराया था।

हिन्दुस्तान की जनता ने अंग्रेजी हुकूमत के दमनकारी रवैये को सहते हुये भी अहिंसक तौर पर आंदोलन को बनाये रखा। महातमा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ ये आन्दोलन एक सोची समझी रणनीति के तहत ही था इस आन्दोलन की सबसे बड़ी बात ये थी कि इस आन्दोलन में पूरा देश शामिल था, सच में ये एक ऐसा आन्दोलन था जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिला दी थी,ं यहीं से उन्हें महसूस हो गया था कि अब उनका शासन समाप्ति की ओर है। आज ही के दिन हुये इस आन्दोलन में अंग्रेजी हुकूमत के दमनचक्र से पीड़ित,शहीद हुये उनके प्रति रद्धा से मस्तिष्क झुक जाता है। लोग अगस्त क्रान्ति को भूल गये हैं लेकिन हमें जब-जब सरकार की दमनकारी नीति का कोपभाजन बनना पड़ेगा तब-तब हमें इसके शूल चुभते रहेंगे क्योंकि ये क्रान्ति गुलामी से निजात पाने के लिए थी लेकिन आज जो राजनीतिक माहौल उपजा है वो भी गुलामी और असहाय की तस्वीर दिखा रहा है।

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