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संस्कृति से दूरी और फिर वापसी की बदलती धारा

( शिवम् यादव अन्तापुरिया)

)सभ्यता और संस्कृति किसी भी समाज की पहचान होती है। समय के साथ परिवर्तन आना स्वाभाविक है, लेकिन क्या हम अपनी मूल संस्कृति से दूर होकर फिर से उसकी ओर लौट रहे हैं? यह प्रश्न विचारणीय है। आधुनिकता की चकाचौंध में हम पश्चिमी प्रभावों को अपनाते चले गए, लेकिन अब एक नई लहर देखने को मिल रही है—एक ओर जहां वैश्वीकरण और तकनीकी विकास ने हमारी जीवनशैली को बदला, वहीं दूसरी ओर लोग अपनी जड़ों की ओर लौटने का प्रयास भी कर रहे हैं।

संस्कृति से दूर जाने के कारण
पश्चिमी प्रभाव और उपभोक्तावाद
पिछली कुछ दशकों में पाश्चात्य संस्कृति का गहरा प्रभाव हमारे समाज पर पड़ा। खान-पान, पहनावा, भाषा और जीवनशैली में हमने पश्चिमी देशों का अनुसरण किया। बाजारवाद और उपभोक्तावाद ने परंपराओं को हाशिए पर धकेल दिया।

तकनीकी युग और बदलते मूल्य
इंटरनेट, सोशल मीडिया और वैश्विक संचार ने हमें पश्चिमी सोच के अधिक करीब ला दिया। पारंपरिक रीति-रिवाजों को पीछे छोड़ते हुए लोग आधुनिक विचारों को प्राथमिकता देने लगे।

शहरीकरण और संयुक्त परिवारों का विघटन
संयुक्त परिवारों की परंपरा धीरे-धीरे कमजोर हुई, जिससे पीढ़ियों के बीच सांस्कृतिक ज्ञान का हस्तांतरण कम हो गया। अब लोग अपने रीति-रिवाजों और पारंपरिक मूल्यों से धीरे-धीरे अनजान होते जा रहे हैं।

संस्कृति की ओर वापसी के संकेत
लेकिन हाल के वर्षों में एक बदलाव देखने को मिल रहा है। लोग अपनी संस्कृति और जड़ों की ओर लौटने लगे हैं। यह प्रवृत्ति कई रूपों में दिख रही है—

भारतीय त्योहारों और परंपराओं का पुनर्जागरण
लोग अब अपने पारंपरिक त्योहारों को नए उत्साह के साथ मनाने लगे हैं। होली, दिवाली, नवरात्रि जैसे त्योहारों का वैश्विक स्तर पर प्रचार हो रहा है, और युवा पीढ़ी भी इन्हें गर्व से मना रही है।
योग और आयुर्वेद की स्वीकृति
एक समय था जब योग और आयुर्वेद को पुरानी परंपराओं का हिस्सा मानकर भुला दिया गया था, लेकिन अब पूरी दुनिया इसे अपना रही है। भारत में भी लोग एलोपैथी से अधिक प्राकृतिक चिकित्सा की ओर बढ़ रहे हैं।

भारतीय भाषाओं और परिधानों का पुनरुद्धार
अब लोग अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में बात करने पर गर्व महसूस करने लगे हैं। पारंपरिक परिधान जैसे साड़ी, कुर्ता, धोती आदि फिर से लोकप्रिय हो रहे हैं।

स्थानीय खान-पान और व्यंजन
जहां पहले फास्ट फूड का प्रचलन बढ़ रहा था, वहीं अब लोग अपने पारंपरिक व्यंजनों की ओर लौट रहे हैं। घर का बना खाना, मिलेट्स (श्रीअन्न), और क्षेत्रीय व्यंजन अब फिर से लोकप्रिय हो रहे हैं।

आगे का रास्ता…
संस्कृति और आधुनिकता का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। हमें विज्ञान और तकनीक को अपनाते हुए अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। शिक्षा प्रणाली में भारतीय संस्कृति को महत्व देना, पारिवारिक मूल्यों को संजोना और नई पीढ़ी को अपनी सभ्यता से अवगत कराना आवश्यक है।

हमने भले ही अपनी संस्कृति से दूर जाने की गलती की हो, लेकिन अब हम फिर से अपनी परंपराओं की ओर लौट रहे हैं। यह बदलाव हमारे समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक शुभ संकेत है। आधुनिकता और परंपरा का संगम ही हमारे भविष्य को सही दिशा में ले जा सकता है। “संस्कृति सिर्फ अतीत नहीं, बल्कि भविष्य की नींव भी होती है।”

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