Tue. Apr 29th, 2025

“लोकतंत्र में मर्यादा या दिखावा? सैल्यूट की नीति के सामाजिक संकेत”

(सलीम रज़ा)

मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाना के उस आदेश पर एक नई बहस छिड़ गई जिसमें उन्होंने पुलिस कर्मियों को सांसद विधायकों को सैल्यूट देने के आदेश करे। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में विधायकों और सांसदों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वे जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं और उनकी जिम्मेदारी होती है कि वे जनता की आकांक्षाओं को विधानमंडल और संसद में उचित रूप से प्रस्तुत करें। हाल ही में यह निर्णय लिया गया है कि पुलिसकर्मी अब विधायक और सांसद को देखकर सैल्यूट करेंगे। इस निर्णय ने कई प्रश्नों और चर्चाओं को जन्म दिया है — यह सम्मान की दृष्टि से उचित है या लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत?लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुने हुए प्रतिनिधियों का सम्मान आवश्यक होता है। वे न केवल जनता की आवाज़ होते हैं, बल्कि नीति निर्माण में भी अहम भूमिका निभाते हैं।

पुलिसकर्मियों द्वारा सैल्यूट देना एक प्रकार से राज्य की संस्थाओं के बीच सम्मान और समन्वय का प्रतीक माना जा सकता है। इससे विधायकों और सांसदों को यह संदेश जाता है कि वे एक जिम्मेदार पद पर हैं, और उनके निर्णयों का प्रभाव सामाजिक व्यवस्था पर पड़ता है।वहीं दूसरी ओर, सैल्यूट की यह व्यवस्था कई बार “सत्ता के प्रदर्शन” की तरह भी देखी जाती है। पुलिस बल एक संवैधानिक संस्था है, और उसकी प्राथमिक निष्ठा संविधान, कानून और नागरिकों के प्रति होनी चाहिए — किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं। ऐसे में यह डर बना रहता है कि सैल्यूट जैसी व्यवस्था कहीं “राजनीतिक व्यक्ति पूजा” की ओर तो नहीं बढ़ रही?यह भी महत्वपूर्ण है कि विधायक और सांसद अक्सर कानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दों में हस्तक्षेप करते हैं।

कई बार पुलिस और राजनेताओं के बीच टकराव भी देखा गया है। यदि सैल्यूट जैसी प्रक्रिया को औपचारिक बनाया जाता है, तो यह पुलिसकर्मियों में मनोवैज्ञानिक दबाव भी पैदा कर सकती है — खासकर तब जब संबंधित प्रतिनिधि अपने प्रभाव का अनुचित प्रयोग करते हों।अगर यह व्यवस्था केवल एक औपचारिकता तक सीमित रहे और इसका उद्देश्य केवल सम्मान देना हो, न कि दबाव बनाना — तो यह किसी हद तक स्वीकार्य हो सकती है। परंतु इस निर्णय के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक होगा कि पुलिसकर्मी अपने कार्य को निष्पक्ष, निर्भीक और संविधान के अनुरूप ढंग से कर सकें।

साथ ही, सांसद और विधायक भी अपने पद का उपयोग जनता की सेवा और न्याय के लिए करें — न कि व्यक्तिगत लाभ और प्रभाव के लिए।विधायक और सांसद को देखकर सैल्यूट करना एक प्रतीकात्मक कदम है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच पारस्परिक सम्मान को दिखा सकता है। किंतु इसे केवल ‘सम्मान’ की दृष्टि से देखा जाए, ‘श्रद्धा’ या ‘डर’ की नहीं। यह ज़रूरी है कि हम लोकतंत्र की उस मूल भावना को बनाए रखें, जिसमें सभी संस्थाएं — चाहे वह निर्वाचित प्रतिनिधि हों या कार्यपालिका — एक दूसरे का सम्मान करें, परंतु अपने-अपने कर्तव्यों की सीमाओं का भी ध्यान रखें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *