Fri. Oct 31st, 2025

विश्व खाद्य दिवस : “भोजन की धरती पर भूख की मार — भारत अब भी ‘गंभीर’ श्रेणी में”

(सलीम रज़ा, पत्रकार)

आज विश्व खाद्य दिवस है समस्त देशवासियों को आधे अधूरे मन से शुभकामनाऐं। सोशल मीडिया पर विश्व .खाद्य दिवस की शुभकामनाओं के अनगिनत संदेश अपलोड किये जा रहे हैं। लेकिन अगर आप आंकड़ों पर नजर दौड़ायेगे तब हमें महसूस होगा कि शुभकामना संदेश देखने और पढ़ने में हमारा मन मायूस हो जाता है। खैर कुछ भी हो हमें इस दिवस को मनाने और अपनी शुभकामना देने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए इस उम्मीद के साथ कि हम विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर हैं  हमारे कभी तो अच्छे दिन आयेंगे ही। जानते ही हैं विश्व खाद्य दिवस संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (FAO) की स्थापना की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। FAO की स्थापना वर्ष 1945 में की गई थी, और वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र ने यह तय किया कि हर साल 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाया जाएगा ताकि पूरी दुनिया भूख, कुपोषण और खाद्य सुरक्षा जैसे मुद्दों पर एकजुट होकर कार्य करे।

आज, जब विज्ञान और तकनीक ने अभूतपूर्व प्रगति कर ली है, तब भी दुनिया में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें दिन में दो वक्त का भोजन नसीब नहीं होता। संयुक्त राष्ट्र की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में आज भी लगभग 67.3 करोड़ लोग (673 million) भूख से जूझ रहे हैं। यह पूरी मानव आबादी का लगभग 8.2 प्रतिशत है। इनमें से बड़ी संख्या अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों की है। वहीं 73.3 करोड़ लोग (733 million) कुपोषण का शिकार हैं, यानी उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा।

भारत की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2025 में भारत का स्कोर 25.8 है और यह “गंभीर ” श्रेणी में आता है। इस सूची में भारत का स्थान 125 देशों में 111वाँ है। भारत में लगभग 20 करोड़ (200 million) लोग आज भी भोजन और पोषण की असुरक्षा झेल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और अधिक खराब है, जहाँ गरीबी और बेरोज़गारी के कारण लोगों के लिए नियमित और पौष्टिक भोजन जुटाना कठिन होता जा रहा है। बच्चों में कुपोषण की दर बेहद चिंताजनक है — 33 प्रतिशत बच्चे छोटे कद के हैं और 19 प्रतिशत बच्चे वजन की कमी  से पीड़ित हैं।

यह केवल भोजन की कमी का परिणाम नहीं, बल्कि असमान वितरण, गरीबी, और जलवायु परिवर्तन की भी देन है। भारत में आज भी लाखों टन अनाज गोदामों में सड़ जाता है जबकि लाखों लोग भूखे पेट सो जाते हैं। आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल लगभग 74 मिलियन टन भोजन बर्बाद होता है। यह बर्बादी केवल आर्थिक हानि नहीं बल्कि नैतिक असफलता भी है। सोचिए, इतने भोजन से लगभग 10 करोड़ से अधिक लोगों का पेट भरा जा सकता है

दुनिया में हर नौवें व्यक्ति को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता। WHO और FAO की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार भूख से पीड़ित लोगों में सबसे बड़ी संख्या महिलाएँ और बच्चे हैं। अनुमान है कि हर साल लगभग 31 लाख (3.1 million) बच्चों की मौत कुपोषण से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है। वहीं, अफ्रीका के कुछ देशों में पाँच साल से कम उम्र के हर तीन में से एक बच्चा कुपोषण से ग्रस्त है।

जलवायु परिवर्तन भी इस समस्या को और गंभीर बना रहा है। FAO का अनुमान है कि अगर तापमान वृद्धि और अनियमित वर्षा का सिलसिला जारी रहा, तो वर्ष 2050 तक कृषि उत्पादन में 10 से 25 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। इससे अनाज, सब्जियों और फलों की उपलब्धता घटेगी और कीमतें बढ़ेंगी। परिणामस्वरूप गरीब देशों में भूख और बढ़ेगी।

भारत सरकार ने इस दिशा में कई योजनाएँ शुरू की हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना  के तहत लगभग 81.35 करोड़ लोगों को हर महीने 5 किलो मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। इसके अलावा मिड-डे मील योजना के तहत स्कूलों में बच्चों को पौष्टिक भोजन दिया जाता है ताकि वे पढ़ाई के साथ स्वास्थ्य पर भी ध्यान दे सकें। राष्ट्रीय पोषण अभियान  माताओं और बच्चों में पोषण सुधार पर केंद्रित है। वहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) देश के गरीब वर्गों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराती है। इन योजनाओं से करोड़ों लोगों को राहत मिली है, लेकिन अब भी कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं।

सिर्फ सरकारी प्रयास ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग को इसमें योगदान देना होगा। यदि हर व्यक्ति यह संकल्प ले कि वह भोजन की बर्बादी नहीं करेगा, जरूरतमंदों की मदद करेगा और स्थानीय किसानों से सीधे सामान खरीदेगा, तो यह बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। छोटे किसान जो देश के कुल खाद्य उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत योगदान करते हैं, उन्हें तकनीकी सहायता, उचित मूल्य और बाजार की पहुँच दिलाना भी जरूरी है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम भोजन को “संपत्ति” की तरह नहीं बल्कि “जिम्मेदारी” की तरह देखें। हर साल दुनिया में लगभग 1.3 अरब टन (1.3 billion tons) भोजन बर्बाद होता है, जिसकी आर्थिक कीमत करीब 2.6 ट्रिलियन डॉलर आंकी गई है। यह वही भोजन है जिससे पूरी दुनिया के भूखे लोगों का पेट भराया जा सकता है।

विश्व खाद्य दिवस हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम कैसी दुनिया बनाना चाहते हैं — वह जहाँ कुछ लोग भोजन के अभाव में मर रहे हैं, या वह जहाँ भोजन समान रूप से बाँटा जाए और कोई भी भूखा न रहे। यह दिन हमें चेतावनी भी देता है और प्रेरणा भी कि हमें अपने संसाधनों का उपयोग जिम्मेदारी से करना चाहिए।

अगर हम मिलकर छोटे-छोटे कदम उठाएँ — जैसे भोजन की बर्बादी रोकना, पौष्टिक आहार अपनाना, किसानों का समर्थन करना, और गरीबों की मदद करना — तो एक बड़ा बदलाव संभव है। FAO का लक्ष्य “Zero Hunger by 2030” तभी पूरा होगा जब हर देश, हर समाज और हर व्यक्ति इस दिशा में गंभीरता से काम करे।

भोजन केवल जीवन बनाए रखने का साधन नहीं, बल्कि सभ्यता की पहचान है। जब तक इस धरती पर एक भी इंसान भूखा है, तब तक हमारी प्रगति अधूरी है। इस विश्व खाद्य दिवस पर हमें यह वचन लेना चाहिए कि हम भोजन का सम्मान करेंगे, उसे व्यर्थ नहीं जाने देंगे, और इस धरती को ऐसा स्थान बनाएँगे जहाँ हर कोई पेट भरकर, गरिमा के साथ जी सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *